अभी वक्त रहते संभल जाइयेगा
जब गुजरेगी हद से किधर जाइयेगा ।
मुकद्दर से मिलती है ये ज़िंदगानी
गुजरने से पहले संवर जाइयेगा ।
ये जब भी बोलेगी सच ही कहेगी
निगाहों से बचकर किधर जाइयेगा ।
ये जग आईना है ख़ुदी का
जो दीजिएगा वही पाइयेगा ।
घर के बिगड़ने से सूरज क्या डरना
बिगड़ना है बनना, न डर जाइयेगा ।
अजी आप ही ने बिगाड़ा है मुझको
शरम पे मेरी कुछ तो शरमाइयेगा।
दहशत से दुनिया संवरती नहीं है
मुहब्बत से ही काम कर पाइयेगा ।
जब गुजरेगी हद से किधर जाइयेगा ।
मुकद्दर से मिलती है ये ज़िंदगानी
गुजरने से पहले संवर जाइयेगा ।
ये जब भी बोलेगी सच ही कहेगी
निगाहों से बचकर किधर जाइयेगा ।
ये जग आईना है ख़ुदी का
जो दीजिएगा वही पाइयेगा ।
घर के बिगड़ने से सूरज क्या डरना
बिगड़ना है बनना, न डर जाइयेगा ।
अजी आप ही ने बिगाड़ा है मुझको
शरम पे मेरी कुछ तो शरमाइयेगा।
दहशत से दुनिया संवरती नहीं है
मुहब्बत से ही काम कर पाइयेगा ।