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शनिवार, 9 जून 2018

दर्द दिल का मिटा गया कोई
मेरे आंसू सुखा गया कोई ।

आदमी को कोई मलाल नहीं
भूख के काम आ गया कोई ।

मैं जो दिन के उजाले सा फैला
रात बनकर के छा गया कोई ।

मेरी हस्ती मेरी नहीं केवल
मेरी आंखों में बस गया कोई ।

सूरज प्रकाश राजवंशी 09-06-2018


सब शामिल हैं दुनिया में, कैसी-कैसी तैयारी से
दुनिया चलती कैसे ये, सीधेपन या अय्यारी से ॽ

हाथ मिला के चले गए, देखा न पूछा हाल मेरा
और दावा उनका निभा गए, हर रिश्ता ज़िम्मेदारी से ।

लालच के बाज़ार में *सूरज* अपनी भी मजबूरी है
सीखी थोड़ी सी अय्यारी हमने भी लाचारी से ।

सूरज प्रकाश राजवंशी 02-05-2018


छीन के आसमां धरती ओ समंदर मेरा
नाम भी ख़ूब ये रक्खा है कलंदर मेरा ।

कितना भारी है सितम हाय सितमगर तेरा
आंख का सूख गया सारा समंदर मेरा ।

संग हर इक चीज़ के मिलती है ज़िम्मेदारी भी
संभल कि तूने उठा रक्खा है ख़ंजर मेरा ।

सूरज प्रकाश राजवंशी 27-05-2018

शुक्रवार, 18 मई 2018

अभी वक्त रहते संभल जाइयेगा
जब गुजरेगी हद से किधर जाइयेगा ।

मुकद्दर से मिलती है ये ज़िंदगानी
गुजरने से पहले संवर जाइयेगा ।

ये जब भी बोलेगी सच ही कहेगी
निगाहों से बचकर किधर जाइयेगा ।

ये जग आईना है ख़ुदी का
जो दीजिएगा वही पाइयेगा ।

घर के बिगड़ने से सूरज क्या डरना
बिगड़ना है बनना, न डर जाइयेगा ।

अजी आप ही ने बिगाड़ा है मुझको
शरम पे मेरी कुछ तो शरमाइयेगा।

दहशत से दुनिया संवरती नहीं है
मुहब्बत से ही काम कर पाइयेगा ।
आह को बेहिसाब होना था
दर्द दिल का जवाब होना था !

तेरी महफ़िल में आये हैं हम भी
बूंद को बेहिसाब होना था !

आज तूने हमें पुकारा तो
हमीं को लाजवाब होना था !

गरदिशों को मैं ढूंढता ही रहा
दिल का खा़ना ख़राब होना था !

दोस्त आ ले लें आख़िरी झप्पी
अपना रिश्ता ख़राब होना था !

आदमीयत की बात कौन करे
लालची-दिल, जनाब होना था !

दो ही किरणों से देख *सूरज* की
तेरा चेहरा गुलाब होना था !


21-04-2018
सब शामिल हैं दुनिया में, कैसी-कैसी तैयारी से
दुनिया चलती कैसे ये, सीधेपन या अय्यारी से ॽ

हाथ मिला के चले गए, देखा न पूछा हाल मेरा
और दावा उनका निभा गए, हर रिश्ता ज़िम्मेदारी से ।

लालच के बाज़ार में सूरज अपनी भी मजबूरी है
सीखी थोड़ी सी अय्यारी हमने भी लाचारी से ।

3-5-2018

रविवार, 25 मार्च 2018

पैरहन-ओ-नज़र-ओ-ईमान से कुछ कुछ,
हम भी नज़र आते हैं मुस्लमान से कुछ कुछ ।

सीरत में तो सब हो गये शैतान से बदतर,
सूरत ही तो मिलती है ये इंसान से कुछ कुछ ।

नहीं मिलता किसी दानिश से कभी इल्मो-फ़न तो फिर,
हम सीख लेते हैं किसी नादान से कुछ कुछ ।

आंख में कुछ और है, ओर दिल में है कुछ और,
करते हैं मगर बात वो,  ज़ुबान से कुछ कुछ ।

आते ही सामने मेरे, ख़ामोश हो गये,
लिखते थे हमें ख़त में जो जी जान से कुछ कुछ ।

सूरज प्रकाश राजवंशी, 02-04-1997.