इक मज़हबी हिन्दू न मुस्लमान बने वो !
हर आदमी को चाहिए इन्सान बने वो !!
पाल तो लेते हैं इक माँ-बाप दस औलाद को !
पालना मुश्किल हुआ दस का मगर माँ-बाप को !!
इश्वर अल्लाह एक हैं, और एक है मानव मूल !
रूप रंग और गंध भिन्न है फिर भी सब हैं फूल !!
आज की सडकों पर मिलते हैं गड्ढे- पत्थर- धूल
इन से तो पगडण्डी भली थी हिलती न थी चूल !
कुछ पैसे देकर ब्याज पे बन बैठे धनवान !
मूल चूका कब पायेगा निर्धन है अन्जान !!
चले धर्म की राह तो छूटे मोह माया और क्रोध !
सरल प्रेम से ही होता है सच्चा जीवन शोध !!
सूरज प्रकाश राजवंशी
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