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सोमवार, 7 नवंबर 2011

दोहे

इक मज़हबी हिन्दू न मुस्लमान बने वो !
हर  आदमी को चाहिए इन्सान बने वो  !!

पाल  तो  लेते  हैं  इक  माँ-बाप दस  औलाद  को !
पालना मुश्किल हुआ दस का मगर माँ-बाप को !!

इश्वर  अल्लाह एक हैं,  और एक है  मानव मूल !
रूप रंग और गंध भिन्न है फिर भी सब हैं फूल !!

आज की सडकों पर मिलते हैं गड्ढे- पत्थर- धूल
इन से तो पगडण्डी भली थी हिलती न थी चूल !

कुछ पैसे देकर ब्याज पे बन बैठे धनवान  !
मूल चूका कब पायेगा निर्धन है अन्जान !! 

चले धर्म की राह तो छूटे मोह माया और क्रोध !
 सरल प्रेम से ही होता है सच्चा जीवन शोध !!

सूरज प्रकाश राजवंशी
 

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