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रविवार, 25 मार्च 2018

पैरहन-ओ-नज़र-ओ-ईमान से कुछ कुछ,
हम भी नज़र आते हैं मुस्लमान से कुछ कुछ ।

सीरत में तो सब हो गये शैतान से बदतर,
सूरत ही तो मिलती है ये इंसान से कुछ कुछ ।

नहीं मिलता किसी दानिश से कभी इल्मो-फ़न तो फिर,
हम सीख लेते हैं किसी नादान से कुछ कुछ ।

आंख में कुछ और है, ओर दिल में है कुछ और,
करते हैं मगर बात वो,  ज़ुबान से कुछ कुछ ।

आते ही सामने मेरे, ख़ामोश हो गये,
लिखते थे हमें ख़त में जो जी जान से कुछ कुछ ।

सूरज प्रकाश राजवंशी, 02-04-1997.

करीब रब के वो इंसान हुआ करता है,
जो अपने हक़ से गरीबों को दिया करता है ।

दराज़ इश्क़ का अंदाज़ हुआ करता है,
हुस्न चन्द रोज़ का मेहमान हुआ करता है ।

ज़िंदा रहते तो कभी हाल न पूछा जिसका,
आदमी ढोंगी है, मरने पे दुआ करता है ।

होते आए हैं हर इक दौर में रावण पैदा,
बड़ी मुश्किल से मगर राम हुआ करता है ।

सूरज प्रकाश राजवंशी, अक्टूबर 1997

कब से बच्चा ताक रहा है,
मां की गोद में जाने को,
लेकिन मां के पास नहीं है
फुर्सत के कुछ खुल्ले सिक्के,
जो देकर बालक को बहला दे,
क्योंकि उसको समय नहीं है
बिज़नेस पार्टी और बोतल से,
फिर भी अपना फ़र्ज़ जताने,
आया बाज़ार से लाई है,
जो अपनी ममता को बेचेगी
अपना लाड़ लुटाएगी,
क्योंकि वो लाचार है
उसका बच्चा जो भूखा है ।

सूरज प्रकाश राजवंशी-13-04-08

मैं खु़द को अब भूल गया हूं ।

आदर्शों को छोड़ दिया है,
नियम ताक पर धर आया हूं,
मुरझी हुई माला की माफ़िक नैतिकता को,
उस बूढ़े पीपल के ऊपर फेंक दिया है,
शिष्टाचार को मैं रद्दी में बेच आया हूं।
कंक्रीट की इस धरती पर
मानवता क्या होती है,
मैं इस्पात का मानव क्या जानूं?

सूरज प्रकाश राजवंशी, 13-04-08

सोमवार, 12 मार्च 2018

ऐ बारिश,
तू रोज़ क्यूं नहीं आती ।

प्यास लगती है रोज़ धरती को
सूख जाते हैं पंछियों के गले
होंठ सूखे हुए से रहते हैं
फूल थके थके से लगते हैं
खुशबुएं पंख छोड़ देती है
धूल उड़ उड़ के यही कहती है,
ऐ बारिश,
तू रोज़ क्यूं नहीं आती ।

सूरज प्रकाश राजवंशी - १३-०२-२०१८