पैरहन-ओ-नज़र-ओ-ईमान से कुछ कुछ,
हम भी नज़र आते हैं मुस्लमान से कुछ कुछ ।
सीरत में तो सब हो गये शैतान से बदतर,
सूरत ही तो मिलती है ये इंसान से कुछ कुछ ।
नहीं मिलता किसी दानिश से कभी इल्मो-फ़न तो फिर,
हम सीख लेते हैं किसी नादान से कुछ कुछ ।
आंख में कुछ और है, ओर दिल में है कुछ और,
करते हैं मगर बात वो, ज़ुबान से कुछ कुछ ।
आते ही सामने मेरे, ख़ामोश हो गये,
लिखते थे हमें ख़त में जो जी जान से कुछ कुछ ।
सूरज प्रकाश राजवंशी, 02-04-1997.
हम भी नज़र आते हैं मुस्लमान से कुछ कुछ ।
सीरत में तो सब हो गये शैतान से बदतर,
सूरत ही तो मिलती है ये इंसान से कुछ कुछ ।
नहीं मिलता किसी दानिश से कभी इल्मो-फ़न तो फिर,
हम सीख लेते हैं किसी नादान से कुछ कुछ ।
आंख में कुछ और है, ओर दिल में है कुछ और,
करते हैं मगर बात वो, ज़ुबान से कुछ कुछ ।
आते ही सामने मेरे, ख़ामोश हो गये,
लिखते थे हमें ख़त में जो जी जान से कुछ कुछ ।
सूरज प्रकाश राजवंशी, 02-04-1997.