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रविवार, 25 मार्च 2018

मैं खु़द को अब भूल गया हूं ।

आदर्शों को छोड़ दिया है,
नियम ताक पर धर आया हूं,
मुरझी हुई माला की माफ़िक नैतिकता को,
उस बूढ़े पीपल के ऊपर फेंक दिया है,
शिष्टाचार को मैं रद्दी में बेच आया हूं।
कंक्रीट की इस धरती पर
मानवता क्या होती है,
मैं इस्पात का मानव क्या जानूं?

सूरज प्रकाश राजवंशी, 13-04-08

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