ऐ बारिश,
तू रोज़ क्यूं नहीं आती ।
प्यास लगती है रोज़ धरती को
सूख जाते हैं पंछियों के गले
होंठ सूखे हुए से रहते हैं
फूल थके थके से लगते हैं
खुशबुएं पंख छोड़ देती है
धूल उड़ उड़ के यही कहती है,
ऐ बारिश,
तू रोज़ क्यूं नहीं आती ।
सूरज प्रकाश राजवंशी - १३-०२-२०१८
तू रोज़ क्यूं नहीं आती ।
प्यास लगती है रोज़ धरती को
सूख जाते हैं पंछियों के गले
होंठ सूखे हुए से रहते हैं
फूल थके थके से लगते हैं
खुशबुएं पंख छोड़ देती है
धूल उड़ उड़ के यही कहती है,
ऐ बारिश,
तू रोज़ क्यूं नहीं आती ।
सूरज प्रकाश राजवंशी - १३-०२-२०१८
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