तुझको ही अगर ज़िन्दगी से प्यार नहीं है,
फन्दा तेरे गले का खतावार नहीं है !
है रूह सभी एक ये इंकार नहीं है,
पर हर कोई आदम सा तो बीमार नहीं है !
वो शेख जो करता है ब्राह्मण से दूरियां,
कुछ हाथ में आ जाये तो इंकार नहीं है !
क्यूँ मेरी सीधी बातों का मतलब टेढ़ा लेते हो,
सूरज तो सीधा सादा है अय्यार नहीं है !
पेशे को बेचकर ये क्या दौलत कमाई है,
अब खुद हकीमों सा कोई बीमार नहीं है !
फिर आज मुझे वक़्त की गर्दिश ने क्यों मारा,
क्यों शौक मेरा लड़ने को तैयार नहीं है !
क्यों न मिले मुझको ज़रा सा नूर-ऐ-इलाही,
इतना बड़ा "सूरज" तो गुनाहगार नहीं है !
सूरज प्रकाश (०८/०४/२०११)
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