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शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

- माँ -


माँ तेरी ममता का आँचल 
सौ सागर का सानी है,
तू उद्गम मीठे अमृत का 
बाकी सब कुछ पानी है !

तू केवल देती ही देती 
लेने का कोई  नहीं,
छल कपट से दूर सदा तू 
स्वार्थ से तुझको काम नहीं !

हम बच्चे हैं, हम कच्चे हैं 
धीरे - धीरे दूर चलेंगे 
अपनी सुख सुविधा के धन में 
तेरा हिस्सा भूल चलेंगे !

एक नया सँसार बसाने 
बेटी दूजे घर जायेगी,
तेरे मन की त्रास मिटाने 
लौट न जाने कब आएगी !

बेटा पत्नि का अनुयायी 
शोहरत धन का लोभी है,
कुछ लूट चूका कुछ लूट रहा है 
वो पास तेरे अब जो भी है !

लेकिन फिर भी शिकन नहीं है 
तू खुश है बच्चों को देखकर,
उनकी खुशी में झूम रही है 
अपनी हर पीड़ा को झेलकर !

कोटी-कोटी प्रणाम तुझे 
कोटी-कोटी आभार है माँ,
तू जय है जीवन की केवल 
बाकी सबकुछ हार है माँ !

तू ही गुरु है तू ही ईश्वर 
तू ही हर आधार है माँ,
तुझमें हर इक चीज़ समाई 
तुझमें ही सँसार है माँ !

निर्मल-चाँदनी सा शीतल 
तेरा ममता-व्यवहार है माँ,
"सूरज-प्रकाश" सा एक अनंत 
केवल तेरा ही प्यार है माँ !

कोटी-कोटी प्रणाम तुझे 
कोटी-कोटी आभार है माँ !!

(सूरज प्रकाश राजवंशी  - 19/02/2008)


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