माँ तेरी ममता का आँचल
सौ सागर का सानी है,
तू उद्गम मीठे अमृत का
बाकी सब कुछ पानी है !
तू केवल देती ही देती
लेने का कोई नहीं,
छल कपट से दूर सदा तू
स्वार्थ से तुझको काम नहीं !
हम बच्चे हैं, हम कच्चे हैं
धीरे - धीरे दूर चलेंगे
अपनी सुख सुविधा के धन में
तेरा हिस्सा भूल चलेंगे !
एक नया सँसार बसाने
बेटी दूजे घर जायेगी,
तेरे मन की त्रास मिटाने
लौट न जाने कब आएगी !
बेटा पत्नि का अनुयायी
शोहरत धन का लोभी है,
कुछ लूट चूका कुछ लूट रहा है
वो पास तेरे अब जो भी है !
लेकिन फिर भी शिकन नहीं है
तू खुश है बच्चों को देखकर,
उनकी खुशी में झूम रही है
अपनी हर पीड़ा को झेलकर !
कोटी-कोटी प्रणाम तुझे
कोटी-कोटी आभार है माँ,
तू जय है जीवन की केवल
बाकी सबकुछ हार है माँ !
तू ही गुरु है तू ही ईश्वर
तू ही हर आधार है माँ,
तुझमें हर इक चीज़ समाई
तुझमें ही सँसार है माँ !
निर्मल-चाँदनी सा शीतल
तेरा ममता-व्यवहार है माँ,
"सूरज-प्रकाश" सा एक अनंत
केवल तेरा ही प्यार है माँ !
कोटी-कोटी प्रणाम तुझे
कोटी-कोटी आभार है माँ !!
(सूरज प्रकाश राजवंशी - 19/02/2008)
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