यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

राम तो प्रेम से झूठा भी ग्रहण करते हैं !

ठंडा करते हैं कभी दिल को गरम करते हैं,
यार आशिक भी जो करते हैं अजब करते हैं !

नज़र आता है कभी चाँद में महबूब का मुखड़ा,
और कभी चाँद में सूरज का भ्रम करते हैं !

मौलवी साहब तो करते हैं अमीरों को सलाम,
हरम में बैठ के जेबों को गरम करते हैं !

वो अक्लमंद हैं, जो चलते नहीं सीधी चालें,
और हम बेवकूफ, सीधा जो सफ़र करते हैं !

प्रेम में झूठ तो चलता नहीं लेकिन "सूरज",
राम तो प्रेम से झूठा भी ग्रहण करते हैं ! 

सूरज प्रकाश राजवंशी (०५/०७/२०११)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें