यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

ऐ सपनों, जी न जलाया करो !

ऐ, सपनों न आँखों में आया करो,
गरीबी में जी न जलाया करो !

छत से सवेरे ये कहती है चिड़िया,
कभी हमको भी दाना खिलाया करो !

बुरी है गिराने की आदत तुम्हारी,
तुम गिरतों को आकर उठाया करो !

सूरज प्रकाश (३१-०७-२०११)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें