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शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

मेरी मुहब्बत

मेरे खूँ से अपनी हथेली रचाकर
चली है जो तू गैर का घर बसाने,
तडपाएगी तुझको मेरी मुहब्बत
याद आयेंगे तुझको मेरे फ़साने !

ऐसा नहीं तू भुला देगी मुझको
मुझे भूल पाना नामुमकिन रहेगा,
हर एक रात मेरी कहानी कहेगी
मेरा फ़साना हर एक दिन कहेगा !

तड़पने लगे ये तेरे होंठ जब भी
समझ लेना मैं याद आने लगा हूँ,
तेरी तमन्ना के ऊंचे महल की
कमज़ोर ईंटें हिलाने लगा हूँ !!

सूरज राजवंशी (१७-०८-१९९९) 

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