मेरे खूँ से अपनी हथेली रचाकर
चली है जो तू गैर का घर बसाने,
तडपाएगी तुझको मेरी मुहब्बत
याद आयेंगे तुझको मेरे फ़साने !
ऐसा नहीं तू भुला देगी मुझको
मुझे भूल पाना नामुमकिन रहेगा,
हर एक रात मेरी कहानी कहेगी
मेरा फ़साना हर एक दिन कहेगा !
तड़पने लगे ये तेरे होंठ जब भी
समझ लेना मैं याद आने लगा हूँ,
तेरी तमन्ना के ऊंचे महल की
कमज़ोर ईंटें हिलाने लगा हूँ !!
सूरज राजवंशी (१७-०८-१९९९)
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