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शनिवार, 26 जनवरी 2013

कुछ ग़ज़लें



जीना मुहाल है मेरा, मरना मुहाल है,
जो हाथ में आया नहीं उसका मलाल है  !

कहते हैं ये मेहमां कि हम न जायेंगे अभी,
अब तक तेरे घर में बचा आटा है दाल है   !

है बाल से बारीक भी,  धरती से बड़ा भी
नज़रों में जो आता नहीं उसका जमाल है  !
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तुम साथ हो मेरे तो किस बात का डर है,
हर गाम पे मंजिल है हर इक गाम  डगर है !

हम ढूँढने निकलेंगे तो उसे  ढूँढ  ही लेंगे,
लगता है ये मुश्किल, बहुत आसान  मगर है !

है कौन वो गुस्ताख़ गिराता है बिजलियाँ ?
है काम ये पहले का मगर आज असर है  !
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रात को जब हम सोये थे
तारे सपनों में खोये थे  !

अब फल होंगे आम कहाँ ?
बीज बबूल के बोये थे  !

अब जाने पर न रोयेंगे,
हम जब आये तब रोये थे  !
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"सूरज प्रकाश राजवंशी "

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