न तू ही ख़फ़ा है, न मैं ही ख़फ़ा हूँ
ये है माज़रा क्या यही सोचता हूँ !
अंधेरों के साये जमा हैं जहाँ पर
उजालों के रस्ते वहां मोड़ता हूँ !
रहें हाथ खाली तो थामुंगा अच्छा
यही सोचकर मैं बुरा छोड़ता हूँ !
भला है बुरा है सभी कुछ है उसका
है मेरा यहाँ क्या मैं ये सोचता हूँ !
हो जाते हैं हल्के दिलो-दम ऐ "सूरज"
पकड़ने को बच्चे मैं जब दौड़ता हूँ !
सूरज प्रकाश राजवंशी (रचनाकाल - 09-05-2012, चंडीगढ़)
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