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शनिवार, 26 जनवरी 2013

मैं ये सोचता हूँ !



न तू ही ख़फ़ा है, न मैं ही ख़फ़ा हूँ
ये है माज़रा क्या यही सोचता हूँ  !

अंधेरों के साये जमा हैं जहाँ पर
उजालों के रस्ते वहां मोड़ता हूँ  !

रहें हाथ खाली तो थामुंगा अच्छा
यही सोचकर मैं बुरा छोड़ता हूँ  !

भला है बुरा है सभी कुछ है उसका
है मेरा यहाँ क्या मैं ये सोचता हूँ  !

हो जाते हैं हल्के दिलो-दम ऐ "सूरज"
पकड़ने को बच्चे मैं जब दौड़ता हूँ  !

सूरज प्रकाश राजवंशी (रचनाकाल - 09-05-2012, चंडीगढ़)

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